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Monday, February 1, 2021

रानी सिंह की कविताएँ

रानी सिंह (युवा-कवयित्री) 

जन्म तिथि :- 30 जून, पूर्णिया, (बिहार)
प्रकाशन :- विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, साझा संकलनों एवं वेव पोर्टलों पर कविता, कहानी, लघुकथा, आलेख आदि प्रकाशित।

1. आजाद हुई हूँ अभी-अभी
ऊँची गर्दनों और लम्बे धारदार चोंच वाले 
पंछियों के झुंड में
आहिस्ते-आहिस्ते दूर कहीं से 
चलकर आई 
डरी-सहमी सकुचाई सी एक चिड़िया।

एक से बढ़कर एक धुरंधर 
पंछियों के उस झुंड में से कुछ ने
निहारा गौर से उसे
तो कुछ ने अनदेखा किया
उस मरियल पिद्दी-सी चिड़िया को
और फिर मशगूल हुए सब आपसी चर्चा-परिचर्चा में।

चर्चा चल पड़ी जोरदार 
बोलने की
चलने की और
उड़ान भरने की
सुनकर ऐसी चर्चा
थोड़ी उत्सुक हुई वह चिड़िया भी
और साहस जुटाकर बोली हौले से
मैं भी कुछ बोलना चाहती हूँ
संग आपके चलना चाहती हूँ
ऊँची उड़ान भरना चाहती हूँ।

हें...! 
तू क्या कर पाएगी 
ओ छोटी चिड़िया ?
डपटकर बोला ऊँचे गर्दन वाला एक पंछी
बहुत कमजोर है तू तो
सांसें चढ़ जाएंगी तेरी बोलने से
लुढ़क जाएगी तू यूँ ही थोड़ी देर चलने से
थक जाएंगे पंख तुम्हारे उड़ने से
तू कदापि टिक न पाएगी हमारे सामने
चुप रह और जा 
फुदकना किसी डाली पर।

ना.. ना.. ना..
इतना कमजोर न समझो मुझे
वर्षों तलक एकांतवास में
खामोश रही हूँ मैं
पिंजरे के चंद तारों तक 
बंधी रही है चाल मेरी
फड़फड़ाए नहीं हैं मैंने 
पंख भी अपने कभी।

इसीलिए थरथरा रही है थोड़ी जुबां मेरी
लेकिन मैं भी बोल सकती हूँ 
लड़खड़ा रही है चाल थोड़ी
लेकिन मैं भी चल सकती हूँ
अभ्यस्त नहीं उड़ने को पंख मेरे
लेकिन मैं भी उड़ान भर सकती हूँ।

वर्षों के पिंजरबंद से
आजाद हुई हूँ अभी-अभी
अब हो गई हूँ आजाद तो
कोशिशें मुझे भी करने दो
करो भरोसा मेरा भी
धीरे-धीरे ही सही
हुनर सारे सीख जाऊँगी।
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2. पुरुष कभी डायन नहीं होते
क्या आप जानते हैं ?
ओझा, मंतरिया, भगत, फकीर, गुणियाँ 
बहुत ही अहम भूमिका निभाते हैं ये
पुरुषवादी सोच और सत्ता को
बनाए रखने में।

हमारे पुरुष-प्रधान समाज में 
पुरुष ओझा-मंतरिया
भगत गुणियाँ फकीर सब हो सकते हैं
लेकिन पुरुष कभी डायन नहीं होते।

डायन तो सिर्फ स्त्रियाँ होती हैं
वो भी वे स्त्रियाँ 
जो करती हैं कोशिशें बोलने की
पुरुषवादी समाज से नजरें मिलाकर
उठाती हैं सिर अपने हक के लिए
अपने ऊपर हुए अन्याय के खिलाफ।

दरअसल वे 
डायन होती नहीं हैं
बना दी जाती हैं जबरन
ताकि उस पर तोहमत लगाई जा सके
किसी नवजात को खाने का
ठहराया जा सके जिम्मेदार
किसी के जवान बेटे की मौत के लिए
लगाया जा सके इल्जाम
मानसिक रोग से पीड़ित 
बहू-बेटियों पर भूत चढ़ाने का।

और किया जा सके 
उसे प्रताड़ित इस कदर
दी जा सके इतनी
शारीरिक व मानसिक यातनाएं
कर दिया जाए उसे इतना कलंकित कि
किसी को मुँह दिखाने के लायक न रहे
खुद से ही हो जाए उसे इतनी घृणा
कि फिर कभी हिम्मत न जुटा पाए
आवाज उठाने की
पुरुषवादी सोच के खिलाफ।
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3. घर तो जाते होगे ना
स्त्री-देह के पुर्जे-पुर्जे को
नोंच-खसोट कर चिथड़े उड़ाने के बाद
किस पानी से धोते हो
अपने रक्तरंजित हाथों को
किस तरह से चुन-चुन कर
निकालते हो नाखूनों में फंसे
मांस के सूक्ष्म लोथड़ों को ?

कुकृत्य के बाद आखिर
घर तो जाते होगे ना ?

अच्छा बताओ !
घर जाकर
उन्हीं हाथों से कैसे उठाते हो
अपनी बिटिया को गोद में
कैसे चूमते हो
अपने लिजलिजे होंठों से
उसका माथा
कैसे मिलाते हो
अपनी गंदी नजरें
अपनी माँ-बहनों से
दरिंदगी की सारी हदें पार करने वाले
ओ नराधम!
कैसे जताते हो अपनी पत्नी से प्रेम ?

मानवजाति को शर्मशार करने वाले
ओ बलात्कारियों !
कैसे आती है तुम्हें चैन की नींद
क्या कानों में नहीं गूंजती है
उसकी दर्द भरी चीखें
कैसे जिंदगी को जी लेते हो
उन तड़पती रूहों के बीच ?

आखिर किस हाड़-मांस के
बने हो तुम
किस प्रेतात्मा का वास है तुझमें
रक्तसंचार होता है तुम्हारे शरीर में
या रेतसंचार ?
जो तुम्हारी शर्म-ओ-हया 
तुम्हारी संवेदना
तुम्हारी आत्मा सब राख हो चुकी है।
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4. कुछ आजाद ख्याल लड़कियाँ 
कुछ आजाद ख्याल लड़कियाँ 
भाग गईं अपने प्रेमियों के साथ
क्योंकि घर वाले बाँध देना चाहते थे उन्हें
अयोग्य दूल्हे के गले
प्रेम-विवाह के खिलाफ।

कुछ आजाद ख्याल लड़कियाँ 
छोड़ गईं घर 
बढ़ा दिए कदम शहरों की ओर 
अपने सपनों को पंख लगाने के लिए
क्योंकि गाँव-समाज नहीं चाहता था कि
अधिक पढ़-लिख कर बेटियाँ 
हो जाएं मनबढ़ू।

कुछ आजाद ख्याल लड़कियाँ
लाँघ आईं पति की देहरी
क्योंकि उन्हें तनिक न भाया 
सती सावित्री बनना
अपने चरित्रहीन पतियों के लिए।

कुछ आजाद ख्याल लड़कियों ने
कर ली खुदकुशी
क्योंकि वो हार गई थीं
बंद कोठरी की यातनाओं से मुक्ति पाने के 
तमाम हथकंडे अपना-अपना कर।

कुछ आजाद ख्याल लड़कियाँ
बन गईं संघर्षशील सशक्त माँएं
क्योंकि उन्हें ढाल बनकर
साथ देना था बेटियों का।

कुछ आजाद ख्याल लड़कियाँ
जो रह गई थीं मौन
वो भी अंदर-ही-अंदर सुलगती-सुलगती
हो गईं विद्रोहिणी एक दिन
और थाम लिया कलम।
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सम्पर्क - 
मो. :- 8581949482
ई-मेल :- raniksingh77@gmail.com

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